जहाँ चाह वहाँ राह यह कहावत मनुष्य की इच्छाशक्ति का महत्व प्रकट करने वाली है। जो व्यक्ति किसी भी तरह की परिस्थितियों का दास बनकर नहीं रह जाता] परिश्रम से मुँह नहीं मोड़ता और कठिनाइयों का मुँहतोड़ उत्तर देना जानता है] उसी को इच्छा करने का अधिकार है] उसी की चाह को अच्छी चाह माना जाता है। ऐसा व्यक्ति ही अपनी चाह को पूरा करने के लिए आगे बढ़कर उचित राह को खोज लेता है। इसलिए यह आवश्यक है कि हमें अपनी इच्छाशक्ति को मरने नहीं देना चाहिए। सच्ची चाह को पूरा करने के लिए कोई न कोई राह अवश्य होती है। यही जीवन का सत्य है। व्यक्ति को अपने जीवन का रास्ता इसी आधार पर तैयार करना पड़ता है। यह पुस्तक हमें सिखाती है कि आपका कर्म ही प्रधान है। अच्छा कर्म करने से अच्छे फल की प्राप्ति होगी। लेकिन यदि हमारा कर्म ही अच्छा नहीं होगा तो जिंदगी में रोना ही होगा। यह पुस्तक निश्चित रूप से व्यक्तित्व निर्माण की प्रेरणा देती है तथा संभावनाओं की तलाश करते हुए कर्मपथ पर चलने में सहायक है।
ISBN: 978-81-941581-3-4
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