हम देखते हैं कि मनुष्य हो या जीव.जंतुए सब कभी.न.कभी भय बाध के शिकार होते हैं। इस तरह से भय मानव या जीव.जंतु की एक विशेषता या पहचान है। वनस्पति या तृणमूल की बात तो हम नहीं करेंगे, लेकिन इस जगत् में सभी प्राणियों में भय मौजूद रहता है। भय इसलिए होता है कि सभी प्राणी किसी-न-किसी रूप में अपने प्राण की रक्षा करना चाहते हैं। लेकिन एक भय ऐसा भी होता है, जो प्राणी के विकास में ग्रहण बन जाता है। एक भय ऐसा भी होता है, जो मानव को उसकी अंदरूनी क्षमता से महरूम करता है। यह ऐसा भय होता हैए जो मानव को कमजोर करता रहता है। एक मजबूत से मजबूत व्यक्ति के हृदय के किसी कोने में भी भय छिपा रहता है, जो उसे संभलने के लिए होशियार करता है। उसे यह डर रहता है कि वह जो कदम उठाने जा रहा है, कहीं उसका विपरीत प्रभाव न पड़े। कुछ लोग संघर्ष करते हैं। वे भय से संघर्ष करते हैं। अपने आस.पास की स्थितियों से संघर्ष करते रहते हैं। लेकिन जब वही भय विकराल रूप में सामने आता है, तो मनुष्य की संघर्ष क्षमता को कमजोर कर देता है। इस तरह से उसकी उफर्जा का क्षय हो जाता है। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो अपने कर्मपथ पर सदैव अडिग रहते हैं। वे स्वयं पर भय को हावी होने नहीं देते। भय होता है, लेकिन वे उसे हल्के में लेते हैं
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